Bhootni Ka Saya – Bhootni Ki Kahani – Hindi Horror Story

Bhootni Ka Saya – Bhootni Ki Kahani – Hindi Horror Story.

अभी मैं कक्षा दस मे हूँ। बात उस समय की हैं जब कक्षा आठ मे पढ़ा करता था। मुझे पढ्ना लिखना और खेलना बहुत पसंद हैं। अक्सर नेट पर मैं हिन्दी कहानिया पढ़ता रहता हूँ। कहानिया ऐसी चीज होती हैं जिस से बहुत कुछ सीखने के लिए मिल जाता हैं। अगर कोई खुद की कहानी लिखना चाहे तो वो भी बहुत आसान हैं। अब धीरे धीरे मुझ मे कहानिया लिखने की प्रेरणा जग रही हैं। मैं सोचता हूँ की क्यू न मैं भी नेट पर कहानिया लिखू। मजा भी आएगा और पढ़ने वालों का दिल भी बहल जाएगा। मेरा नाम अनुज कुमार प्रधान हैं।

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मैं ओड़ीशा का रहने वाला हूँ। ओड़ीशा के सुंदरगढ़ जिले मे मेरा गाँव हैं। पर हम सभी कटक मे आ कर शिफ्ट हो गए हैं। पहले मेरे पिता कटक आए थे। उन्होने यहा पर एक कपड़े का दुकान कर लिया। फिर हम सभी यहा आ कर बस गए। मेरा पदाइश भी कटक का ही हैं। हम लोग दो भाई हैं। मेरा भाई मुझ से बड़ा हैं। पर उसका तो मन पढ़ाई मे बिलकुल ही नहीं लगता हैं। पढ़ने का नाम सुन कर उसके शरीर मे साँप सूंघ जाता हैं। वो बिलकुल पढ्न नहीं चाहता हैं।

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इसलिए मेरे पिता जी उसे दुकान ले जाते हैं। उसे वहा बहुत मन लगता हैं। बोलने मे तो बहुत एक्सपेर्ट हैं पर पढ़ाई मे बिलकुल ज़ीरो। मैं हमेशा स्कूल जाता हूँ और कक्षा दस का एक्जाम भी देने वाला हूँ। मैं आप बीती एक घटना लिख रहा हूँ। जो मेरे साथ घाटा था। उस वक़्त मैं कक्षा आठ मे पढ़ रहा था। मेरे गाँव से कॉल आया की वहा कुछ जरूरी काम हैं सभी को गाँव आना जरूरी हैं। मेरे पिता जी बोले की मैं गाँव जा रहा हूँ। हम सभी भी ज़िद्द करने लगे की हम भी गाँव जाएंगे।

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माँ भी बोली की बहुत दिन हो गया हैं, गाँव गए हुए। वो भी गाँव जाएगी। गाँव जाने का अच्छा मौका मिल गया। गाँव की हरी भरी धरती। चारों तरफ घने पेड़ वहा का तो बात ही निराला हैं। मैं तो बहुत खुश हो गया की अब गाँव जाने के लिए मिलेगा। ठंड का मौसम था हम सभी तैयार हो कर गाँव के लिए रवाना हो गए। रात के समय ट्रेन पकड़े और सुबह अपने गाँव पहुच गए। ठंड का मौसम था। ठंड बहुत ही ज्यादा लग रहा था। हम सभी गाँव पहुच गए। गाँव का हारा भरा खेत। चरो तरफ हरियाली। हम गाँव पहुच कर बहुत खुश था। पर गाँव मे ही एक ऐसा घटना घटा जिसका जिक्र मैं यहाँ कर रहा हूँ। गाँव मे कुछ ज्यादा ही ठंड था। चारों तरफ पानी का श्रोत होने के कारण ठंड ज्यादा था। रात के समय तो और भी ठंड लगता था। लोग शाम होते ही खाना बना लेते थे।

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जैसे ही थोड़ा रात हुआ की सभी खाना खा कर सो गए। पर रात के समय हम सभी बाहर आग जला कर तापते थे। आग जला कर तापना अच्छा भी लगता था। बड़े लोग अपना अलग जगह आग जला कर तापते थे और बच्चे सभी अलग जगह आग जलाते थे। हम सभी अपने घरों से आलू ले कर जाते और उसे आग मे डाल देते। जब आलू पक जाता तो उसे छिल कर खा जाते। आपस मे ढेर सारी बाते करते। बहुत मज़ा भी आता। एक रात हम सभी आग जला कर आग ताप रहे थे की लकड़ी खत्म हो गई। मेरा एक दोस्त बोला की मैं जा कर लकड़ी ले आता हूँ। वो लकड़ी लाने के लिए गया और कुछ देर के बाद आ कर चुप चाप बैठ गया। किसी से कुछ भी नहीं बोला।

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जब उस से मेरा एक दोस्त बोला की लकड़ी क्यू नहीं लाये तो भी वो उसके सवाल का जवाब नहीं दिया। तो फिर मेरा एक दूसरा दोस्त उठा और लकड़ी लाने के लिए चला गया। वो भी कुछ देर के बाद खाली हाथ आया और चुप चाप अपने जगह पर आ कर बैठ गया। उसने भी किसी के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। धीरे धीरे कर के सभी गए और वापस आ कर फिर से आग तापने वाले जगह पर आ कर बैठ गए। जब मुझ से रहा नहीं गया तो मैं बोला की तुम सभी यही बैठो मैं लकड़ी ले कर आता हूँ। मैं भी उस जगह पर पहुचा जहा पर लकड़ी का टाल था।

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जहा पर बहुत से लकड़ी रखी हुई थी। जैसे ही मैं अंधेरे मे वहा पहुचा तो देखा की एक बिलकुल बूढ़ी औरत लकड़ी के टाल के पास बैठी हुई हैं। मुझे कुछ अजीब नहीं लगा। मैं गया और लकड़ी के टाल से लकड़ी उठाने ही वाला था की वो बूढ़ी औरत डाटते हुए मुझे बोली की तू भी लकड़ी लेने के लिए चला आया। सभी को भगा दी तू फिर से आ गया। यहा से जाता हैं की नहीं। मैं उस बूढ़ी  औरत की आवाज़ सुन कर डर गया और वापस आ गया। यहा आग भी बुझ चुकी थी।

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मैं अपने घर गया और अपनी माँ को सब कुछ बता दिया की कैसे एक औरत मुझे लकड़ी लेने से रोकी। मेरी माँ मेरी बात सुन कर गुस्सा हो गई। वो बोली की मेरा बेटा एक तो बहुत दिनो के बाद गाँव आया हैं और लकड़ी लेने गया तो उसे कौन डाट दिया। मेरी माँ बोली की कल मेरे साथ चलना देखती हूँ तुम्हें कौन डाटा हैं। मैं तो सोचा की कल हो सकता हैं उस बूढ़ी औरत के साथ मेरी माँ का झगरा होगा।

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मैं अपने कमरे मे गया और सो गया। जब सुबह हुआ तो मेरी माँ मुझे ले कर उस औरत के घर चले गई। जिसके घर से मैं लकड़ी ले रहा था। मेरी माँ जब उसके घर पाहुची तो उस घर की पुतोह बाहर निकली और मेरी माँ को प्रणाम की। मेरी माँ बोली की कल रात मे मेरा बेटा आप के यहा से लकड़ी लेने आया था तो उसे लेने क्यू नहीं दी। तो वो औरत कुछ देर तक तो सोच मे पड गई फिर बोली। नहीं चाची आप को जितना लकड़ी चाहिए ले जाना मैं भला क्यू माना करूंगी। आप ही का तो घर हैं। आप लोग तो गाँव भी बहुत कम आते हैं। मेरी माँ मुझ से बोली की बेटा जब लकड़ी का जरूरत होगा तो ले लेना। कोई मना नहीं करगा।

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अगर कोई मना किया तो मुझे बोलना। मुझ मे भी हौसला आ गया। मैं सोच लिया की अब डर किस बात का मुझे तो अब इस घर से पर्मिशन भी मिल गया हैं। मैं अपने घर वापस आ गया। जब रात हुआ तो फिर से सभी आग जला कर आग तापने लगे मैं भी उस मे सामील था। बच्चे सभी अपना आग अलग जलाए हुए थे। मैं रात के समय आग ताप रहा था और अपने गाँव के दोस्तों से बाते भी कर रहा था। पर फिर से लकड़ी खत्म हो गई। जब लकड़ी खत्म हुआ तो मैं अपने दोस्तों से बोला की तुम सभी यही बैठो मैं लकड़ी ले कर आता हूँ। मुझ मे हौसला भी था क्यू की उस घर से मुझे अनुमति मिल चुकी थी की तुहे जितना लकड़ी चाहिए ले जाना। अब मैं सोच लिया की मुझे कौन रोकेगा।

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मैं निडर हो कर लकड़ी के चाल तक गया। जब मैं वहाँ पाहुचा तो देखा की वो बूढ़ी औरत फिर से वही बैठी हुई हैं। रात का समय था। वैसे भी गाँव का रात बहुत ही डरावना होता है। घोर अंधेरे मे वो बूढ़ी औरत जो की सफ़ेद साड़ी पहने हुए थी। उसने मुझे फिर से टोका और बोली की मैंने तुम्हें कल मना किया था की यहा से लकड़ी मत ले जाना फिर भी तुम नहीं माने और लकड़ी लेने चले आए।

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तो मैंने उस बूढ़ी औरत से कहा की तुम्हारे घर से इजाजत मिल चुकी हैं की जितना लकड़ी चाहिए ले जाना कोई मना नहीं करेगा। मैं तो आज लकड़ी ले कर ही दम धरूँगा। वो बूढ़ी औरत बोली की यहा से भागता हैं की नहीं। नहीं भागे तो मैं तुम्हें मारूँगी। मैं बोला की मैं लकड़ी ले कर ही रहूँगा। मैं उस बूढ़ी औरत का बात नहीं मना और लकड़ी उठाने लगा। तभी वो मेरे पीठ पर अपने छड़ी से एक जोरदार छड़ी दे मारी। मैं वही चिल्लाते हुए गिर गया। मेरा चिल्लाने की आवाज़ सुन कर जीतने भी लोग आग ताप रहे थे सभी दौड कर मेरे पास पहुच पते तब तक मैं बहुत मार खा चुका था।

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इतना मार पड़ा की मैं बेहोश हो कर वही गिर गया। मुझे वहा से उठा कर घर लाया गया। जब मुझे होश आया तब पता चला की जिस बूढ़ी औरत ने मुझे मारा था वो बूढ़ी औरत नहीं बल्कि एक भूतनी थी। जो उस लकड़ी के ढेर के पास रहा करती थी। बहुत दिन पहले ही उस घर की दादी मर चुकी थी जो भूतनी बन कर सभी को डराती थी।

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