Paropkar Ka Phal , Hindi Kahani

 Paropkar Ka Phal , Hindi Kahani.

बहुत दिनो पहले की बात हैं। किसी गाँव मे एक गरीब मजदूर रहा करता था। दिन भर कड़ी मेहनत करता और शाम के समय अपने झोपड़े मे चला आता। उस मजदूर का कोई भी नहीं था न माँ न पिता बेचारा अकेले ही अपना जीवन यापन किया करता था। गाँव के एक झोपड़े मे उसका ठिकाना था।

दिन भर कड़ी मेहनत कर के वापस अपने झोपड़े मे चला आता। उसके घर के पास ही नीम का एक पेड़ था। रोज सुबह जग कर अपने घर आँगन मे झारु मारता और रात का बचा हुआ खाना कौआ को दे देता। रोटी के टुकरे टुकरे कर के कौआ के सामने रख देता। कौआ को भी खाना मिल जाता और रोटी खा कर वे सभी उचे आकाश की तरफ उड़ जाते। उस गरीब मजदूर का रोज का आदत था की वो कौआ को खाना जरुर देता। उसकी ये आदर और सेवा का भाओ देख कर एक कौआ उस पर बहुत प्रसन्न था।

उसे भी रोज रोटी का टुकरा मिल जाता जिस वजह से सुबह का भोजन खोजने के लिए कही जाना नहीं पड़ता। रात भर नीम के पेड़ पर रहता और सुबह सुबह गरीब मजदूर कौआ का रोटी खिला देता। एक दिन एक कौआ सोचा की ये गरीब मजदूर दिन भर कितना कडा मेहनत करता हैं। पर सुबह सुबह हम सभी को रोटी खिलना नहीं भूलता। घर आँगन मे झारू मरने के बाद हमे रोटी दे देता हैं। मुझे इसके लिए कुछ करना चाहिए। अब कौआ को चिंता समा गया की वो उस गरीब मजदूर के लिए क्या करे। बहुत दिनो तक उसके दिमाग मे ये ही दौरता की मजदूर के लिए ऐसा क्या किया जाए जिस से इसकी गरीबी दूर हो जाए।

कौआ अपने चिंता मे इधर उधर उड़ता रहता और शाम के समय नीम के पेड़ के पास चला आता। सुबह सुबह ही उसे भर पेट रोटी खाने के लिए मिल जाता। एक दिन की बात हैं कौआ राजा के महल के पास उड़ रहा था। उसने देखा की राजा के महल का एक खिड़की खुला हुआ हैं। वो खिड़की के पास जा कर देखा तो अंदर मे सोने चाँदी से भरा एक सन्दुक खुला हुआ हैं। उसके दिमाग मे एक उपाय सुझा क्यू न इस सन्दुक से एक सोने का हार चोरी कर के गरीब मजदूर को दे दिया जाए।

कौआ ये सोच कर सब की नजर बचा कर उस सोने चाँदी से भरा हुआ सन्दुक के पास पहुचा। सन्दुक से एक कीमती सोने का हार चुरा कर सीधे नीम के पेड़ के ऊपर चला आया। अब नीम के पेड़ के ऊपर बैठ कर सोचने लगा की ये हार कैसे उस मजदूर को दिया जाए। रात भर सोने का हार ले कर वो नीम के पेड़ पर ही रहा। पर जैसे ही सुबह होने वाली थी की कौआ उस हार को गरीब मजदूर के आँगन मे गिरा कर फिर से नीम के पेड़ के ऊपर जा कर बैठ गया। वो देखने लगा की कब मजदूर जागेगा औए आँगन मे आ कर देखेगे।

जब सुबह हुआ तो मजदूर अपना घर आँगन साफ सफाई करने के लिए अपने कुटिया से बाहर निकाला। जैसे ही वो अपने कुटिया के आँगन मे आ कर देखा तो तंग रह गया। उसने देखा की उसके आँगन मे एक बिलकुल चमचमाता सोने का कीमती हार पड़ा हुआ हैं। वो चारों तरफ देखा पर उसे वहाँ पर कोई इंसान नजर नहीं आया। अब सोच मे पड़ गया की आखिर कार ये किसका हार मेरे घर के आँगन मे पड़ा हुआ हैं।  इतना कीमती हार तो पूरे गाँव मे किसी का नहीं होगा।

थोड़ा देर सोचने के बाद वो मजदूर सोचा की जरूर भगवान को मेरी गरीबी पर तरस खा कर उन्होने ही मुझे सोने का हार उपहार स्वरूप दिये हैं। मजदूर उस हार को पा कर बहुत खुश हुआ और खुशी खुशी अपने कुटियाँ के अंदर चला गया। नीम के पेड़ पर बैठा कौआ सब कुछ देख रहा था। वो मजदूर को खुश देख कर बहुत खुश हुआ। उसने आज तक मजदूर को इतना खुश नहीं देखा था। मजदूर फिर से अपने घर आँगन को साफ सुथरा कर के रोटी का टुकरा कौआ को खाने के लिए दे दिया। कौआ रोटी का टुकरा खाया और आकाश की तरफ उड़ गया। कौआ सोचने लगा की आज उसने बहुत अच्छा काम किया हैं।

अगर गरीब मजदूर का गरीबी मीट जाएगा तो वो रोज ज्यादा से ज्यादा रोटी का टुकरा कौआ को देगा। जिस कारण खाना की तलाश मे इधर उधर भटकना नहीं पड़ेगा। अब कौआ की चाह थी की जितना ज्यल्द हो सके गरीब मजदूर एक अमीर आदमी बन जाए। कौआ फिर से राजा के महल मे पहुच गया। फिर से उसने खिरकी के रास्ते महल के अंदर जा कर उस खुली हुई संदूक से एक सोने का हार चोरी कर के वापस नीम के पेड़ के ऊपर आ गया। रात भर नीम के पेड़ के ऊपर रहा और सुबह होने का इंतेजर करता रहा।

जब सुबह होने ही वाला था की फिर से सोने का हार उस गरीब मजदूर के आँगन मे गिरा कर फिर से नीम के पेड़ के ऊपर जा कर बैठ गया और सारा माजरा देखने लगा। सुबह जब मजदूर अपने कुटियाँ से बाहर निकला तो उसे फिर से कीमती सोने का हार मिला। वो बहुत खुश हुआ और भगवान की कृपा समझ कर खुशी खुशी हार को ले कर अपने कुटियाँ के अंदर चला गया। उसने कौआ को रोटी खिलाई और अपने काम पर चला गया। मजदूर को खुश देख कर कौआ भी बहुत खुश हो गया। अब से रोज वो राजा के महल मे जाने लगा और वहाँ से हाल चोरी कर के मजदूर के आँगन मे गिराने लगा। वो गरीब मजदूर बहुत ही ज्यल्द एक गरीब मजदूर से सेठ साहूकार बन गया।

झोपड़े को तोड़ कर एक आलिसान घर बनवा लिया। जो दूसरों के पास मजदूरी करता था अब उसके पास बहुत से मजदूर काम करने के लिए आने लगे। गाँव का सब से धनी सेठ बन गया। उस मजदूर को तरक्की करता देख कर कौआ भी बहुत खुश था। वो तो सोच रहा था की आज एक साधारण सा मजदूर से जो आदमी सेठ साहूकार बना हैं वो मेरी ही बदौलत हैं। मैं ने ही उसे गरीब से अमीर बना दिया। वो अमीर बन गया पर कौवा को रोटी देना नहीं भुला अब भी रोज सुबह जग कर सब से पहले कौआ को रोटी देता तब ही कोई दूसरा काम करता।

देखते ही देखते उसकी शादी उस इलाके के सब से बड़े जमींदार की बेटी से हो गया। अब उसका घर परिवार था। पर अब भी सुबह सुबह कौआ को रोटी देना बंद नहीं किया। पर जैसे जिसे वो अमीर बनता चला गया। वो काम मे इतना व्यस्त रहने लगा की जब मन करता तो कौवा को रोटी देता और जब मन नहीं करता तो नहीं देता। उसके इस वर्ताओ से कौआ दुखी रहने लगा। उस मजदूर का एक बेटा भी हो गया।

और वो भी कुछ बड़ा हो गया। अब भी कौआ नीम के उस पेड़ पर इस उम्मीद से रहता की सुबह सुबह उसे रोटी का टुकड़ा मिल जाएगा। पर अब उसे रोटी कहाँ नसीब थी। एक दिन उस साहूकार का बेटा सुबह सुबह अपने घर के आँगन मे दूध रोटी खा रहा था और कौआ पेड़ के ऊपर बैठ कर उसे रोटी खाते हुए देख रहा था। जब उस से रहा नही गया तो उसने फैसला किया की वो साहूकार के बेटे के हाथ से रोटी का टुकरा छिन कर भाग जाएगा। कौआ ये सोच कर उस बच्चे के पास आया और रोटी का टुकरा उस से छिनने लगा।

साहूकार का बेटा ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। अपने बेटे के रोने की आवाज़ सुन कर साहूकार घर से बाहर निकला। जैसे ही कौआ रोटी छिन कर उड़ रहा था की साहूकार आपने बेटे को रोता देख कर बहुत क्रोधित हुआ और सामने पड़े एक मोटे से लाठी चला कर कौआ को मारना चाहा। कौआ बेचारा घबरा गया। रोटी का टुकरा अपने पंजे से छोड़ कर दूर आकाश मे उड़ गया। उस गाँव से बहुत दूर जा कर एक पेड़ पर बैठा और सोचने लगा। की जिस रोटी के कारण मैंने एक गरीब मजदूर को सेठ साहूकार बना दिया। उसी साहूकार ने एक रोटी के टुकड़े के कारण मेरा जान लेना चाहा।

जब साहूकार एक गरीब मजदूर था तो रोज ईमानदार से रोटी खिलाया करता था पर जब एक अमीर साहूकार बन गया तो अपने गरीबी के दिन भूल गया। उसने उस दीन से प्रतिज्ञा लिया की कभी भी किसी के ऊपर कोई परोपकार नहीं करूंगा।